विडंबना : भारत में राष्ट्रपति बनने के लिए हिंदी जानना जरूरी नहीं, जबकि डाकिया की नौकरी के लिए अंग्रेजी का ज्ञान होना आवश्यक है.


Thursday 25 February 2010

हिंदी शब्दों के उपयोग में भ्रमवश होने वाली अशुद्धियां- 1


किसी शब्द में 'करण' के जुड़ने पर होने वाली भूलें
जब 'करण' किसी शब्द में जुड़ता है, तब किसी कार्य के होने का या वह जो कुछ किया जाए, उसका बोध कराता है. 'करण' प्रायः विशेषण से जुड़ता है. यह जिस शब्द से जुड़ता है, उसके अंतिम वर्ण को 'ईकार' कर देता है.
हिंदी समाचार पत्रों में अक्सर सशक्तिकरण, संतुष्टिकरण, तुष्टिकरण, शुद्धिकरण, प्रस्तुतिकरण आदि शब्दों का उपयोग होता है, जो गलत हैं, क्योंकि इनमें करण के पहले आने वाला वर्ण 'ईकार' नहीं हुआ है. इन शब्दों को लिखने वालों को लगता है कि ये शब्द क्रमशः सशक्ति, संतुष्टि, तुष्टि, शुद्धि और प्रस्तुति में करण जोड़ कर बने हैं, जबकि ये शब्द सशक्त, संतुष्ट, तुष्ट, शुद्ध और प्रस्तुत से बने हैं. इन शब्दों में करण जुड़ने से इनका अंतिम वर्ण 'ईकार' हो जाएगा और शुद्ध रूप होगा- सशक्तीकरण, संतुष्टीकरण, तुष्टीकरण, शुद्धीकरण और प्रस्तुतीकरण. इसके कुछ अपवाद भी हैं. प्रचलित हो जाने के कारण राष्ट्रीयकरण को उसी रूप में स्वीकृत कर लिया गया है. लेकिन इसके आधार पर केंद्रीयकरण और देशीयकरण लिखा जाना गलत है. इनका शुद्ध रूप होगा- केंद्रीकरण और देशीकरण.
कुछ ऐसे भी शब्द हैं, जो करण में उपसर्ग लगा कर बनाये जाते हैं. हिंदी के दो उपसर्ग अधि और अभि में करण जुड़ने से अधिकरण और अभिकरण शब्द बनते हैं. उपसर्ग के मूल रूप में परिवर्तन नहीं होने से उसका अंतिम वर्ण ईकार नहीं होता है. समानाधिकरण और प्राधिकरण भी अधिकरण शब्द से ही बने हैं.
'करण' जुड़ने से बने शब्दों के कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं :-
सशक्त से सशक्तीकरण, संतुष्ट से संतुष्टीकरण, तुष्ट से तुष्टीकरण, शुद्ध से शुद्धीकरण, प्रस्तुत से प्रस्तुतीकरण, सौंदर्य से सौंदर्यीकरण, पुष्ट से पुष्टीकरण, समष्ट से समष्टीकरण, संस्कृत से संस्कृतीकरण, मानक से मानकीकरण, पवित्र से पवित्रीकरण, निःशस्त्र से निःशस्त्रीकरण, साधारण से साधारणीकरण, उदार से उदारीकरण, लवण से लवणीकरण, विलवण से विलवणीकरण, नव से नवीकरण, विशेष से विशेषीकरण, नूतन से नूतनीकरण, सुंदर से सुंदरीकरण, सम से समीकरण, संक्षिप्त से संक्षिप्तीकरण, स्पष्ट से स्पष्टीकरण, विद्युत से विद्युतीकरण, पश्चिम से पश्चिमीकरण, पाश्चात्य से पश्चात्यीकरण, औद्योगिक से औद्योगिकीकरण, राजनैतिक से राजनैतिकीकरण, आधुनिक से आधुनिकीकरण, नवीन से नवीनीकरण.

Monday 22 February 2010

सिर्फ़ शरीर की पीठ स्त्रीलिंग होती है.

उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित खबरों में अक्सर खंडपीठ, वृहदपीठ, एकलपीठ का उपयोग स्त्रीलिंग में किया जाता है, जो गलत है. इसी प्रकार वाक्‌पीठ का उपयोग भी स्त्रीलिंग में किया जाता है, जबकि यह शब्द भी पुलिंग है. समस्त शब्दों (समास के नियमों से बने हुए शब्द ) के उपयोग में अक्सर ऐसी भूलें होती हैं. समस्त शब्दों के लिंग निर्धारण के सामान्य नियम हैं. इनका लिंग निर्णय अंतिम खंड के आधार पर होता है. जैसे- विद्यालय और पुस्तकालय में विद्या और पुस्तक स्त्रीलिंग हैं, लेकिन अंतिम खंड आलय पुलिंग है. इसलिए विद्यालय और पुस्तकालय दोनों पुलिंग हैं. इसी प्रकार पाठशाला और व्यायामशाला में पाठ और व्यायाम पुलिंग हैं, लेकिन अंतिम खंड शाला स्त्रीलिंग है. इसलिए पाठशाला और व्यायामशाला दोनों स्त्रीलिंग हैं. खंडपीठ, वृहदपीठ, एकलपीठ और वाक्‌पीठ में भी अंतिम खंड पीठ पुलिंग है. यहां पीठ का अर्थ बैठने का स्थान, आसन, सिंहासन, कोई विशिष्ट पवित्र स्थान, विद्यार्थियों के पढ़ने का स्थान, किसी वस्तु के रहने या होने की जगह, अधिष्ठान, किसी विशिष्ट दल या पक्ष के बैठने का सुरक्षि स्थान होता है. अगर खंडपीठ, वृहदपीठ, एकलपीठ और वाक्‌पीठ का उपयोग स्त्रीलिंग में करेंगे, तो नका अंतिम खंड भी स्त्रीलिंग होगा, जिसका अर्थ होता है -शरीर में पेट की दूसरी ओर या पीछे वाला भाग. इस प्रकार खंडपीठ, वृहदपीठ, एकलपीठ और वाक्‌पीठ जैसे शब्दों का स्त्रीलिंग में उपयोग बिल्कुल गलत है.
समस्त शब्दों के लिंग निर्धारण के मामले में कुछ अपवाद भी हैं. जैसे- देन स्त्रीलिंग है, तो लेनदेन पुलिंग, मणि स्त्रीलिंग है, तो नीलमणि पुलिंग, दल पुलिंग है, तो दलदल पुलिंग. इसी प्रकार निधि स्त्रीलिंग है, तो नीरनिधि, तोयनिधि, जलनिधि, क्षीरनिधि पुलिंग हैं, आना पुलिंग है, तो दुअन्नी, चवन्नी, अठन्नी स्त्रीलिंग हैं, राह स्त्रीलिंग है, तो चौराहा पुलिंग है, मंजिल स्त्रीलिंग है, तो दुमंजिला, तिमंजिला पुलिंग है.
कई शब्द ऐसे हैं, जिनके लिंग-भेद अर्थ-भेद के कारण बदल जाते हैं. ऐसे शब्दों के उपयोग में सावधानी बरतना जरूरी है, नहीं तो लिंग संबंधी भूलें हो सकती हैं. ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं :- उड़िया- निवासी के लिए पुलिंग, तो उड़िया भाषा के लिए स्त्रीलिंग. कल आगामी और बीता दिन के लिए पुलिंग, तो कल चैन व आराम के लिए स्त्रीलिंग. कलकल जल गिरने या चलने का शब्द के लिए पुलिंग, तो कलकल झगड़ा के लिए स्त्रीलिंग. कद ऊंचाई के लिए पुलिंग, तो कद शत्रुता के लिए स्त्रीलिंग. कमंद बादल व पेट के लिए पुलिंग, तो कमंद फंदा व पाश के लिए स्त्रीलिंग. कमला एक प्रकार की बड़ी नारंगी, संतरा के लिए पुलिंग, तो कमला लक्ष्मी, धन के लिए स्त्रीलिंग. कंचुकी रनिवास का द्वारपाल के लिए पुलिंग, तो कंचुकी अंगिया के लिए स्त्रीलिंग. कवायद नियमावली के लिए पुलिंग, तो कवायद परेड के लिए स्त्रीलिंग. कलम आम आदि के कलम अर्थ में पुलिंग, तो कलम लेखनी के अर्थ में स्त्रीलिंग. कोटि करोड़ के लिए पुलिंग, तो कोटि श्रेणी के लिए स्त्रीलिंग. खनक जमीन खोदने वाले के लिए पुलिंग, तो खनक धातुओं टकराने या बजने की क्रिया के लिए स्त्रीलिंग. गम शोक के लिए पुलिंग, तो गम अत्याचार सहने की प्रवृति के लिए स्त्रीलिंग. गंजी गंजेड़ी के लिए पुलिंग, तो गंजी बनियान के लिए स्त्रीलिंग. घाघरा स्त्रियों के पहनावे के लिए पुलिंग, तो घाघरा नदी के लिए स्त्रीलिंग. घात चोट के लिए पुलिंग, तो घात छल के लिए स्त्रीलिंग. चांद चंद्रमा के लिए पुलिंग, तो चांद गंजेपन के लिए स्त्रीलिंग. चाल छत, छप्पर के लिए पुलिंग, तो चाल गति के लिए स्त्रीलिंग. जंग मोरचा के लिए पुलिंग, तो जंग लड़ाई के लिए स्त्रीलिंग. जस्टिस जज के लिए पुलिंग, तो जस्टिस न्याय के लिए स्त्रीलिंग. झाल झांझ के लिए पुलिंग, तो झाल गंध के लिए स्त्रीलिंग. टाल औरतों का दलाल के लिए पुलिंग, तो टाल पुआल का ढेर के लिए स्त्रीलिंग. टीका तिलक के लिए पुलिंग, तो टीका विश्लेषण के लिए स्त्रीलिंग. तामिल निवासी के लिए पुलिंग, तो तमिल भाषा के लिए स्त्रीलिंग. ताईद मुंशी के लिए पुलिंग, तो ताईद तरफदारी के लिए स्त्रीलिंग. ताक ताखा के लिए पुलिंग, तो ताक घात के लिए स्त्रीलिंग. तेलुगु निवासी के लिए पुलिंग, तो तेलुगु भाषा के लिए स्त्रीलिंग. तारा नक्षत्र, सितारा के लिए पुलिंग, तो तारा बालि की पत्नी, बुध की माता के लिए स्त्रीलिंग. तौल तराजू के लिए पुलिंग, तो तौल तौलने की क्रिया के लिए स्त्रीलिंग. दावा स्वत्व के लिए पुलिंग, तो दावा वनाग्नि के लिए स्त्रीलिंग. दर दरवाजा, स्थान के लिए पुलिंग, तो दर रेट, कीमत के लिए स्त्रीलिंग. दाद चर्म रोग के लिए पुलिंग, तो दाद प्रशंसा के लिए स्त्रीलिंग. धातु तत्व, जिससे क्रियायें बनती हैं के लिए पुलिंग, तो धातु खनिज, द्रव्य के लिए स्त्रीलिंग. धूम धुआं के लिए पुलिंग, तो धूम चहल-पहल के लिए स्त्रीलिंग. नाई बाल काटने वाले के लिए पुलिंग, तो नाई समान, तुल्य के लिए स्त्रीलिंग. नस सुंघनी के लिए पुलिंग, तो नस रक्तवाहिनी नली के लिए स्त्रीलिंग. पीठ आसन के लिए पुलिंग, तो पीठ पेट के पीछे के भाग के लिए स्त्रीलिंग. पीर सत्पुरुष के लिए पुलिंग, तो पीर पीड़ा के लिए स्त्रीलिंग. पोल खंभा के लिए पुलिंग, तो पोल खोखलापन के लिए स्त्रीलिंग. बाल केश के लिए पुलिंग, तो बाल अनाज की बाली के लिए स्त्रीलिंग. बाट बटखरा के लिए पुलिंग, तो बाट राह के लिए स्त्रीलिंग. बास निवास के लिए पुलिंग, तो बास गंध के लिए स्त्रीलिंग. बाला कान का छल्ला के लिए पुलिंग, तो बाला किशोरी के लिए स्त्रीलिंग. बोरिया चटाई के लिए पुलिंग, तो बोरिया छोटा बोरा के लिए स्त्रीलिंग. भीत भय के लिए पुलिंग, तो भीत दीवार के लिए स्त्रीलिंग. मशक मच्छर के लिए पुलिंग, तो मशक चमड़े के पीपे के लिए स्त्रीलिंग. मद नशा, गर्व के लिए पुलिंग, तो मद खाता, इन हेड्‍स ऑफ के लिए स्त्रीलिंग. यति संन्यासी के लिए पुलिंग, तो चौपाई में 16 मात्रा पर विराम के लिए स्त्रीलिंग. लय समा जाना के लिए पुलिंग, तो लय सुर के लिए स्त्रीलिंग. विधि ब्रह्मा के लिए पुलिंग, तो विधि प्रणाली, ढंग के लिए स्त्रीलिंग. शान औजार तेज करने का पत्थर के लिए पुलिंग, तो शान ठाट-बाट, प्रभुत्व के लिए स्त्रीलिंग. शाल वृक्ष विशेष के लिए पुलिंग, तो शाल दुशाला के लिए स्त्रीलिंग. साल वर्ष के लिए पुलिंग, तो साल चुभन के लिए स्त्रीलिंग. सील मुहर के लिए पुलिंग, तो सील नमी के लिए स्त्रीलिंग. हार आभूषण के लिए पुलिंग, तो हार पराजय के लिए स्त्रीलिंग.

यह ब्लौग क्यों ?

यह ब्लौग क्यों ?

हिंदी पत्रकारिता में आम तौर पर सामान्य भाषा का उपयोग किया जाता है. इसमें स्थानीय बोलियों का भी समावेश हुआ है. हिंदी की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी भी जाती है. इसकी वैज्ञानिकता और विशेषता को बनाये रखने के लिए और भाषा की एकरूपता, उच्चारण की सटीकता एवं उपयुक्त स्थान पर सही शब्दों के उपयोग के लिए यह जरूरी है कि शब्द निर्माण में मानक और सही वर्तनी का ध्यान रखा जाए. मैं हिंदी का विद्वान नहीं. मेरी मातृभाषा मगही है. मैंने हिंदी की पढ़ाई भी सिर्फ़ हाई स्कूल तक ही की है. लेकिन हिंदी पत्रकारिता के अपने अनुभवों और माननीय रवींद्र बाबू ( श्री रवींद्र कुमार, पटना, बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं ) से जो कुछ भी मैंने सीखा उसके आधार पर हिंदी अखबारों में होने वाली भाषाई भूलों की ओर ध्यान आकृष्ट करने का छोटा-सा प्रयास इस ब्लौग के माध्यम से किया है. मेरा यह प्रयास निरंतर जारी रहेगा. मुझे विश्वास है हिंदी पत्रकारिता के युवा साथियों को इसका लाभ मिलेगा. मैं हिंदी का विशेषज्ञ नहीं हूं, इसलिये आपके सुझावों और टिप्पणियों का सहर्ष स्वागत है. आप अपने विचार anilsingh.patliputraspeaks@gmail.com पर भी मेल कर सकते हैं.