विडंबना : भारत में राष्ट्रपति बनने के लिए हिंदी जानना जरूरी नहीं, जबकि डाकिया की नौकरी के लिए अंग्रेजी का ज्ञान होना आवश्यक है.


Monday 22 February 2010

यह ब्लौग क्यों ?

यह ब्लौग क्यों ?

हिंदी पत्रकारिता में आम तौर पर सामान्य भाषा का उपयोग किया जाता है. इसमें स्थानीय बोलियों का भी समावेश हुआ है. हिंदी की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह जैसी बोली जाती है, वैसी ही लिखी भी जाती है. इसकी वैज्ञानिकता और विशेषता को बनाये रखने के लिए और भाषा की एकरूपता, उच्चारण की सटीकता एवं उपयुक्त स्थान पर सही शब्दों के उपयोग के लिए यह जरूरी है कि शब्द निर्माण में मानक और सही वर्तनी का ध्यान रखा जाए. मैं हिंदी का विद्वान नहीं. मेरी मातृभाषा मगही है. मैंने हिंदी की पढ़ाई भी सिर्फ़ हाई स्कूल तक ही की है. लेकिन हिंदी पत्रकारिता के अपने अनुभवों और माननीय रवींद्र बाबू ( श्री रवींद्र कुमार, पटना, बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं ) से जो कुछ भी मैंने सीखा उसके आधार पर हिंदी अखबारों में होने वाली भाषाई भूलों की ओर ध्यान आकृष्ट करने का छोटा-सा प्रयास इस ब्लौग के माध्यम से किया है. मेरा यह प्रयास निरंतर जारी रहेगा. मुझे विश्वास है हिंदी पत्रकारिता के युवा साथियों को इसका लाभ मिलेगा. मैं हिंदी का विशेषज्ञ नहीं हूं, इसलिये आपके सुझावों और टिप्पणियों का सहर्ष स्वागत है. आप अपने विचार anilsingh.patliputraspeaks@gmail.com पर भी मेल कर सकते हैं.

1 comment:

  1. अनिल सिंह जी,
    आज आपके ब्लॉग पर पहुँच गया "मगही" ढूँढ़ते-ढूँढ़ते । आप मगहीभाषी हैं और हिन्दी के लिए बहुत आच्छा कार्य कर रहे हैं यह जानकर बहुत खुशी हुई । क्या आपने मगही के लिए भी कुछ किया है या कर रहे हैं ?

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